सहारनपुर : 28 मार्च । सहारनपुर की पांवधोई नदी के पुनरुद्धार के लिये पांवधोई बचाव समिति एक बार पुनः कमर कस रही है। आई.एम.ए. सभागार में आयोजित की गई “पांवधोई एवं जल जागरुकता गोष्ठी” में इस आयोजन के सूत्रधार डा. नीरज शुक्ला सहित सभी वक्ताओं ने पेय जल की निरन्तर घट रही मात्रा को लेकर चिन्ता व्यक्त की और जन जागरण की आवश्यकता पर जोर दिया।
कु. शबनूर से लेकर गुरु नानक इं. कालिज के मौ. अनस तक, बेबी मरयम खान से लेकर डा. वीरेन्द्र आज़म तक, सभी वक्ताओं ने पांवधोई बचाव आन्दोलन के मार्ग में आने वाले व्यवधानों की परवाह न करते हुए अपने लक्ष्य की ओर आगे ही आगे बढ़ते रहने हेतु आह्वान किया। डा. वीरेन्द्र आज़म ने कहा कि यह वही पांवधोई नदी है, जिसके संरक्षण के लिये चलाये गये जन-आन्दोलन की अनुगूंज लखनऊ तक पहुंची और चौबीस जिलों के जिलाधिकारियों को शासन द्वारा आदेश दिये गये कि वह पांवधोई बचाओ अभियान का अनुकरण करते हुए अपने अपने जनपदों की नदियों की सुरक्षा के लिये भी प्रयास करें। उन्होंने कहा कि सहारनपुर में गुघाल मेले जैसा ही एक मेला कुछ दशक पहले तक पांवधोई के तट पर भी लगा करता था किन्तु जैसे – जैसे पांवधोई की दुर्दशा बढ़ी, ये सारे मेले और उत्सव अतीत की बातें हो कर रह गई हैं। उन्होंने जनता का आह्वान किया कि वह अपनी समृद्ध संस्कृति एवं विरासत की पहचान पांवधोई नदी को प्रशासन की बैसाखी के सहारे नहीं, अपने दम पर बचाने के लिये प्रयत्नशील हो।
प्रख्यात पर्यावरणविद् और पांवधोई बचाव समिति के कोषाध्यक्ष डा. एस. के. उपाध्याय ने कहा कि कुछ लोग व्यर्थ की अफवाहें फैला रहे हैं कि सरकार से पांवधोई के लिये करोड़ों रुपये आये हैं। सच बात यह है कि पांवधोई बचाव आन्दोलन आज तक जन सहयोग के आधार पर चलता रहा है और सरकार से इस के लिये कभी कोई आर्थिक सहायता नहीं मांगी गई है। नगर निगम अपने संसाधनों का उपयोग करके नदी की सफाई कराती रही है।
एडीएम (ई) और पांवधोई बचाव समिति के सचिव डा. चन्द्र भूषण त्रिपाठी ने भी पांवधोई आन्दोलन के लिये करोड़ों रुपये प्राप्त होने की बात को पुरजोर शब्दों में नकारते हुए कहा कि जो भी चाहे आकर हमारी पासबुक देख सकता है, उसकी फोटोकापी कराकर ले जा सकता है, इसके लिये किसी आर.टी.आई. आवेदन की भी कोई आवश्यकता नहीं है। उन्होंने कहा कि पांवधोई बचाव कार्य को आगे बढ़ाने के लिये मासिक बैठकों का नियमित आयोजन किया जायेगा और इसमें हर किसी का स्वागत है। यह पांवधोई आन्दोलन यहां मंच पर बैठे पदाधिकारियों का ही नहीं है, आम जनता का भी है। इस आन्दोलन से जुड़ने के लिये किसी को आमंत्रण की प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिये बल्कि स्वयंप्रेरणा से आगे आकर इसमें हिस्सेदारी करनी चाहिये।
डा. नीरज शुक्ला, नगर आयुक्त ने कहा कि अभी तक यह आन्दोलन नगर व ग्रामीण क्षेत्रों में अलग – अलग चलता रहा है पर अब इसे संकलापुरी से लेकर शहर तक एक साथ चलाने का प्रयास किया जायेगा। निगरानी समितियों का पुनर्गठन करके इसमें ग्राम प्रधानों की भी भूमिका सुनिश्चित की जायेगी। उन्होंने कहा कि यह भी योजना है कि नदी के दोनों तटों को २००-२०० मीटर के हिस्से में बांट कर अलग – अलग विद्यालयों को रख रखाव की, सफाई की जिम्मेदारी दे दी जाये।
इस अवसर पर राजीव श्रीवास्तव – क्षेत्रीय अधिकारी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, कुलभूषण जैन, अमीर खान, मौलवी फरीद, पंकज बंसल और फैसल सलमानी (सपा नेता), डा. कुदसिया अंजुम, सुषमा बजाज, अमित त्यागी, मुस्कान ज्योति के प्रतिनिधि अविनाश आदि की उपस्थिति उल्लेखनीय रही। कार्यक्रम का संचालन पांवधोई बचाव समिति के सदस्य अमीर चन्द पपनेजा ने किया।
सोचने वाली बात ये है कि बार बार कमर ढीली ही क्यूँ पड़ती हैं की बार बार कसने की ज़रूरत पड़े। सिर्फ सफाई करा देने भर से कुछ नहीं होगा। नगरवासियों को कूड़ा ना फ़ैलाने की सलाह देने से भी कुछ नहीं होगा। खुद प्रशासन ने सीवेज लाइन्स, बड़े बड़े गंदे नालों की मंजिल पांव धोई नदी को बनाया है। इस नदी के किनारों को प्रशासन ने घाट का नहीं अपितु कूड़ा-स्थल का रूप दिया है।वहां बड़े बड़े कूड़े-दान भी रखवाए गए हैं। इसके अतिरिक्त जो सरकारी सफाई कर्मचारी घरो से कूड़ा एकत्रित करते हैं, वो भी इस कूड़े को यहीं फेंकते हैं। क्या उन्हें इसके लिए यही जगह बताई गयी है? यदि नहीं तो इन पर कोई एक्शन क्यूँ नहीं लिया जाता? सहारनपुर प्रशासन को सबसे पहले अपनी खामियों को पूरी तरह सुधारना होगा। उसके बाद ही वो नियमो को तोड़ने के लिए जनता को दण्डित भी कर सकती है।